Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 185] {जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र स्फटिक-बिल्लौर की पट्टियों से बने हैं। उसमें प्रवेश करने एवं बाहर निकलने के मार्ग सुखावह हैं। उसके घाट अनेक प्रकार की मणियों से बँधे हैं। वह गोलाकार है। उसमें विद्यमान जल उत्तरोत्तर गहरा और शीतल होता गया है। वह कमलों के पत्तों, कन्दों तथा नालों से परिव्याप्त है / अनेक उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सोगन्धिक, पुडिरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, शत-सहस्रपत्र-इन विविध कमलों के प्रफुल्लित किजल्क से सुशोभित है। वहाँ भौरे कमलों का परिभोग करते हैं / उसका जल स्वच्छ, निर्मन और पथ :-.. हितकर है / वह कुण्ड' जल से अापूर्ण है / इधर-उधर घूमती हुई मछलियों, कछुओं तथ. पक्षियों के मुन्नत-उच्च, मधुर स्वर से वह मुखरित-गुंजित रहता है, सुन्दर प्रतीत होता है / वह एक पद्मवरवेदिका एवं वनखण्ड द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है / वेदिका, बनखण्ड तथा कमलों का वर्णन पूर्ववत् कथनीय है, ज्ञातव्य है। उस गंगाप्रपातकुण्ड की तीन दिशाओं में-पूर्व, दक्षिण तथा पश्चिम में तीन-तीन सीढ़ियां बनी हुई हैं। उन सीढ़ियों का वर्णन इस प्रकार है। उनके नेम- भूभाग से ऊपर निकले हुए प्रदेश वज्ररत्नमय-ह रकमय हैं। उनके प्रतिष्ठान सीढ़ियों के मूल प्रदेश रिष्ट रत्नमय हैं / उनके खंभे वैर्यरत्नमय है / उनके फलक-पट्ट--पाट सोने-चाँदी से बने हैं। उनकी सूचियाँ दो-दो पाटों को जोड़ने के कोलक लोहिताक्ष-सज्ञक रत्न-निर्मित हैं। उनकी सन्धियाँ--दो-दो पाटों के बीच के भाग वज्ररत्नमय हैं / उनके पालम्बन--चढ़ते-उतरते समय स्खलननिवारण हेतु निर्मित आश्रयभूत स्थान, मालम्बनवाह-भित्ति-प्रदेश विविध प्रकार की मणियों से बने हैं। तीनों दिशाओं में विद्यमान उन तीन-तीन सीढ़ियों के आगे तोरण-द्वार बने हैं। वे अनेकविध रत्नों से सज्जित हैं, मणिमय खंभों पर टिके हैं, सीढ़ियों के सन्निकटवर्ती हैं। उनमें बीच-बीच में विविध तारों के आकार में बहुत प्रकार के मोती जड़े हैं। वे ईहामृग-वृक, वृषभ, अश्व, मनुष्य, मकर, खग, सर्प, किन्नर, रुरुसंज्ञक मृग, शरभ-अष्टापद, चमर-चवरी गाय, हाथी, वनलता, पद्मलता आदि के चित्रांकनों से सुशोभित हैं। उनके खंभों पर उत्कीर्ण वज्ररत्नमयी वेदिकाएँ बड़ी सुहावनी लगती हैं। उन पर चित्रित विद्याधर-युगल-सहजात-युगल-एकसमान, एक आकारयुक्त कठपुतलियों की ज्यों संचरणशील से प्रतीत होते हैं। अपने पर जड़े हजारों रत्नों की प्रभा से वे सुशोभित हैं। अपने पर बने सहस्रों चित्रों से वे बड़े सुहावने एवं अत्यन्त देदीप्यमान हैं, देखने मात्र से नेत्रों में समा जाते हैं / वे सुखमय स्पर्शयुक्त एवं शोभामय रूपयुक्त हैं। उन पर जो घंटियां लगी हैं, वे पवन से प्रान्दोलित होने पर बड़ा मधुर शब्द करती हैं, मनोरम प्रतीत होती हैं। उन तोरण-द्वारों पर स्वस्तिक, श्रीवत्स आदि आठ-आठ मंगल-द्रव्य स्थापित हैं। काले चबरों की ध्वजाएँ काले चँवरों से अलंकृत ध्वजाएँ, (नीले चँवरों की ध्वजाएँ, हरे चॅवरों की ध्वजाएँ, तथा सफेद चॅवरों की ध्वजाएँ, जो उज्ज्वल एवं सुकोमल हैं, उन पर फहराती हैं। उनमें रुपहले वस्त्र लगे हैं। उनके दण्ड, जिनमें वे लगी हैं, वज्ररत्न-निर्मित हैं। कमल की सी उत्तम सुगन्ध उनसे प्रस्फुटित होती है। वे सुरम्य हैं, चित्त को प्रसन्न करनेवाली हैं। उन तोरण-द्वारों पर बहुत से छत्र, अतिछत्र-छत्रों पर लगे छत्र, पताकाएँ, अतिपताकाएँ-पताकाओं पर लगी पताकाएँ, दो-दो घंटाओं की जोड़ियाँ, दो-दो चँवरों की जोड़ियाँ लगी हैं। उन पर उत्पलों, पद्मों, (कुमुदों, नलिनों, सौगन्धिकों, पुण्डरीकों, शतत्रों, सहस्रपत्रों,) शत-सहस्रपत्रों-एतत्संज्ञक कमलों के ढेर के ढेर लगे हैं, जो सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ एवं सुन्दर हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org