Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र [56] राजा भरत के पीछे-पीछे बहुत से ऐश्वर्यशाली विशिष्ट जन चल रहे थे। उनमें से किन्हीं-किन्हीं के हाथों में पद्म, (कुमुद, नलिन, सौगन्धिक, पुंडरीक, सहस्रपत्र-हजार पंखुड़ियों वाले कमल तथा) शतसहस्रपत्र कमल थे। राजा भरत की बहुत सी दासियां भी साथ थीं। उनमें से अनेक कुबड़ी थीं, अनेक किरात देश की थीं, अनेक बौनी थीं, अनेक ऐसी थीं, जिनकी कमर झकी थी, अनेक बर्बर देश की, बकुश देश की, यूनान देश की, पह्लव देश की, इसिन देश की, थारुकिनिक देश की, लासक देश की, लकुश देश की, सिंहल देश की, द्रविड़ देश की, अरब देश की, पुलिन्द देश की, पक्कण देश की, बहल देश की, मुरुड देश की, शबर देश की, पारस देश की-यों विभिन्न देशों की थीं। ___ उनमें से किन्हीं-किन्हीं के हाथों में मंगलकलश, भृगार-झारियाँ, दर्पण, थाल, रकाबी जैसे छोटे पात्र, सुप्रतिष्ठक, वातकरक-करवे, रत्नकरंडक-रत्न-मंजूषा, फूलों की डलिया, माला, वर्ण, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभूषण, मोर-पंखों से बनी फूलों के गुलदस्तों से भरी डलिया, मयूरपिच्छ, सिंहासन, छत्र, चँवर तथा तिलसमुद्गक-तिल के भाजन-विशेष-डिब्बे जैसे पात्र आदि भिन्न-भिन्न वस्तुएँ थीं। इनके अतिरिक्त कतिपय दासियाँ तेल-समुद्गक, कोष्ठ-समुद्गक, पत्र-समुद्गक, चोय (सुगन्धित द्रव्य-विशेष)-समुद्गक, तगर-समुद्गक, हरिताल-समुद्गक, हिंगुल-समुद्गक, मैनसिल-समुद्गक तथा सर्षप (सरसों)-समुद्गक लिये थीं। कतिपय दासियों के हाथों में तालपत्र-पंखे, धूपकडच्छुकधूपदान थे। यों वह राजा भरत सब प्रकार की ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर, विभूषा, वैभव, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, अलंकार-इस सबकी शोभा से युक्त (महती ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर, विभूषा, वैभव, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, अलंकार सहित) कलापूर्ण शैली में एक साथ बजाये गये शंख, प्रणव, पटह, भेरी, झालर, खरमखी, मरज, मृदंग, दन्दभि के निनाद के साथ जहाँ पायधशाला थी, वहाँ आया। आकर चक्ररत्न की ओर देखते ही, प्रणाम किया, प्रणाम कर जहाँ चक्ररत्न था, वहाँ आया, आकर मयुरपिच्छ द्वारा चक्ररत्न को झाड़ा-पोंछा, झाड़-पोंछकर दिव्य जल-धारा द्वारा उसका सिंचन किया—प्रक्षालन किया, सिंचन कर सरस गोशीर्ष-चन्दन से अनुलेपन किया, अनुलेपन कर अभिनव, उत्तम सुगन्धित द्रव्यों और मालाओं से उसकी अर्चा की, पुष्प चढ़ाये, माला, गन्ध, वर्णक एवं वस्त्र चढ़ाये, आभूषण चढ़ाये। वैसा कर चक्ररत्न के सामने उजले, स्निग्ध, श्वेत, रत्नमय अक्षत चावलों से स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, मत्स्य, कलश, दर्पण-इन अष्ट मंगलों का पालेखन किया / गुलाब, मल्लिका, चंपक, अशोक, पुन्नाग, आम्रमंजरी, नवमल्लिका, बकुल, तिलक, कणवीर, कुन्द, कुब्जक, कोरटक, पत्र, दमनक-ये सुराभित सगन्धित पूष्प राजा ने हाथ में लिये, चक्ररत्न के आगे चढ़ाये, इतने चढ़ाये कि उन पंचरंगे फूलों का चक्ररत्न के आगे जानुप्रमाण-घुटने तक ऊँचा ढेर लग गया। तदनन्तर राजा ने धूपदान हाथ में लिया जो चन्द्रकान्त, वन-हीरा, वैडूर्य रत्नमय दंडयुक्त, विविध चित्रांकन के रूप में संयोजित स्वर्ण, मणि एवं रत्नयुक्त, काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथाधूप की गमगमाती महक से शोभित, वैडूर्य मणि से निर्मित था आदरपूर्वक धूप जलाया, धूप जलाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org