Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 50] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र तीन दिन से आने वाला ज्वर, चार दिन से आने वाला ज्वर, इन्द्रग्रह, धनुग्रह, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह आदि उन्मत्तता हेतु व्यन्तरदेव कृत उपद्रव, मस्तक-शूल, हृदय-शूल, कुक्षि-शूल, योनि-शूल, गाँव, (आकर, नगर, निगम, राजधानी, खेट', कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टन, प्राश्रम, सम्बाध,) सन्निवेश----इन में मारि—किसी विशेष रोग द्वारा एक साथ बहुत से लोगों की मृत्यु, जनजन के लिए व्यसनभूत-आपत्तिमय, अनार्य-पापात्मक, प्राणि-क्षय-महामारि आदि द्वारा गाय, बैल आदि प्राणियों का नाश, जन-क्षय—मनुष्यों का नाश, कुल-क्षय-वंश का नाश ये सब होते हैं ? आयुष्मन् गौतम ! वे मनुष्य रोग—कुष्ट आदि चिरस्थायी बीमारियों तथा आतंक-शीघ्र प्राण लेने वाली शूल आदि बीमारियों से रहित होते हैं / मनुष्यों की आयु 32. (1) तोसे णं भंते ! समाए भारहे वासे मणुपाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! जहण्णणं देसूणाई तिण्णि पलिप्रोवमाइं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओक्माई। [32] (1) भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों को स्थिति-आयुष्य कितने काल का होता है ? गौतम ! उस समय उनका प्रायुष्य जघन्य कम से कम कुछ कम तीन पल्योपम का तथा उत्कृष्ट--अधिक से अधिक तीन पल्योपम का होता है। (2) तीसे गं भंते ! समाए भारहे वासे मणुाणं सरोरा केवइ उच्चत्तेणं पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णणं देसूणाई तिण्णि गाउआइं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउआई / (2) भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों के शरीर कितने ऊँचे होते हैं ? गौतम ! उनके शरीर जघन्यतः कुछ कम तीन कोस तथा उत्कृष्टतः तीन कोस ऊँचे होते हैं। (3) ते णं भंते ! मणुआ किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणी पण्णत्ता। (3) भगवन् ! उन मनुष्यों का संहनन कैसा होता है ? गौतम ! वे वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन युक्त होते हैं। (4) तेसि णं भंते ! मणुआणं सरीरा किंसंठिआ पण्णत्ता ? गोयमा ! समचउरससंठाणसंठिया पण्णत्ता। तेसि णं मणुप्राणं बेछप्पण्णा पिटुकरंडयसया पण्णत्ता समणाउसो! (4) भगवन् ! उन मनुष्यों का दैहिक संस्थान कैसा होता है ? आयुष्मन् गौतम ! वे मनुष्य सम-चौरस-संस्थान-संस्थित होते हैं। उनके पसलियों की दो सौ छप्पन हड्डियाँ होती हैं। (5) ते णं भंते ! मणुमा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छन्ति, कहिं उववज्जति ? गोयमा ! छम्मासावसेसाउ जुअलगं पसवंति, एगणपणं राइंदिआई सारखंति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org