Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र मसूर, मूग, उड़द, तिल, कुलथी, निष्पाव-वल्ल, पालिसंदक-चौला, अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव-कोदों, कंगु-बड़े पीले चावल, वरक रालक-छोटे पीले चावल, सण-धान्य विशेष, सरसों, मूलक-मूली आदि जमीकंदों के बीज-ये सब होते हैं ? गौतम ! ये होते हैं, पर उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं पाते। (18) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरए वासे गुड्डाइ वा, दरोओवायपवायविसमविज्जलाइ वा? णो इण? सम?, तीसे समाए भरहे वासे बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए लिंगपुक्खरेइ वा० / (18) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में गर्त ---गड्ढे, दरी–कन्दराएँ, अवपात-ऐसे गुप्त खड्डु जहाँ प्रकाश में चलते हुए भी गिरने की आशंका बनी रहती है, प्रपात-ऐसे स्थान, जहाँ से व्यक्ति मन में कोई कामना लिए भृगु-पतन करे---गिरकर प्राण दे दे, विषम-जिन पर चढ़नाउतरना कठिन हो, ऐसे स्थान, विज्जल-चिकने कर्दममय स्थान- ये सब होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता / उस समय भरतक्षेत्र में बहुत समतल तथा रमणीय भूमि होती है / वह मुरज के ऊपरी भाग आदि की ज्यों एक समान होती है / (16) अस्थि गं भंते ! तोसे समाए भरहे वासे खाणूइ वा, कंटगतणयकयवराइ वा, पत्तकयवराइ वा? णो इण8 सम8, वगयखाणुकंटगतणकयवरपत्तकयवरा णं सा समा पण्णत्ता। (19) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में स्थाणु-ऊर्ध्वकाष्ठ-शाखा, पत्र आदि से रहित वृक्ष-ठूठ, कांटे, तृणों का कचरा तथा पत्तों का कचरा-ये होते हैं / गौतम ! ऐसा नहीं होता / वह भूमि स्थाणु, कंकट, तृणों के कचरे तथा पत्तों के कचरे से रहित होती है। (20) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे डंसाइ वा, मसगाइ वा, जूनाइ वा, लिक्खाइ वा, दिकुणाइ वा, पिसुआइ वा ? णो इण8 सम8, ववगयडंसमसगजूअलिढिकुणपिसुभा उवद्दवविरहिआ णं सासमा षण्णत्ता। (20) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में डांस, मच्छर, जू एँ, लीखें, खटमल तथा पिस्सू होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता / वह भूमि डांस, मच्छर, जू, लीख, खटमल तथा पिस्सू-वजित एवं उपद्रव-विरहित होती है। (21) अस्थि णं भंते ! तोसे समाए भरहे वासे अहोइ वा अयगराइ वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसि मणुआणं प्राबाहं वा, (वाबाहं वा, छविच्छेअं वा उप्पायेति,) पगइभद्दया णं ते वालगगणा पण्णत्ता। (21) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में साँप और अजगर होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org