Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ द्वितीय वक्षस्कार] [75 - गौतम ! उन मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन होते हैं, छह प्रकार के संस्थान होते हैं। उनकी ऊँचाई अनेक धनुष-प्रमाण होती है। जघन्य अन्तर्महर्त का तथा उत्कृष्ट पर्वकोटि का प्रायष्य भोगकर उनमें से कई नरक-गति में, (कई तिर्यञ्च-गति में, कई मनुष्य-गति में) तथा कई देव-गति में जाते हैं, कई सिद्ध, बुद्ध, (मुक्त एव परिनिर्वृत्त होते हैं,) समस्त दुःखों का अन्त करते हैं / उस काल में तीन वंश उत्पन्न होते हैं-अर्हत् वश, चक्रवति-वंश तथा दशारवंश-बलदेववासुदेव-वंश / उस काल में तेवीस तीर्थकर, ग्यारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव तथा नौ वासुदेव उत्पन्न होते हैं / अवसर्पिणी : दुःषमा प्रारक 45. तोसे गं समाए एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायलोसाए वाससहस्सेहिं ऊणिपाए काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहि तहेव जाव' परिहाणीए परिहायमाणे 2 एत्थ णं दूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोसारे भविस्सइ ? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगयुक्खरेइ वा जाव' णाणामणिपंचवर्णेहि कत्तिमेहि चेव अव त्तमेहि चेव / तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स मणुपाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते? गोअमा ! तेसि मणुप्राणं छविहे संघयणे, छविहे संठाण, बाइओ रयणीमो उद्ध उच्चत्तेणं, जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउअं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइआ णिरयगामी, जाव' सव्वदुक्खाणमंतं करेति / / तीसे गं समाए पच्छिमे तिभागे गणधम्मे, पासंडधम्मे, रायधम्मे, जायतेए, धम्मचरणे अ वोच्छिज्जिस्सइ। [45] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस समय के-चतुर्थ प्रारक के बयालीस हजार वर्ष कम एक गरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाने पर अवसापणी-काल कादु:षमा नामक पचम प्रारक प्रारंभ होता है। उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है। भगवन् ! उस काल में भरतक्षेत्र का कैसा आकार-स्वरूप होता है ? गौतम ! उस समय भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है / वह मुरज के, मृदंग के ऊपरी भाग-चर्मपुट जैसा समतल होता है, विविध प्रकार की पाँच वर्षों की कृत्रिम तथा अकृत्रिम मणियों द्वारा उपशोभित होता है। भगवन् ! उस काल में भरतक्षेत्र के मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा होता है ? 1. देखें सूत्र संख्या 28 2. देखें सूत्र संख्या 6 3. देखें सूत्र संख्या 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org