Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ द्वितीय वक्षस्कार विशेष (जवा), मूसल और मुष्टि-परिमित-मोटी धाराओं से सात दिन-रात तक सर्वत्र एक जैसी वर्षा करेगा। इस प्रकार वह भरतक्षेत्र के अंगारमय, मुर्मुरमय, क्षारमय, तप्त-कटाह सदृश, सब ओर से परितप्त तथा दहकते भूमिभाग को शीतल करेगा। यो सात दिन-रात तक पुष्कर-संवर्तक महामेघ के बरस जाने पर क्षीरमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा / वह लम्बाई, चौड़ाई तथा विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा। वह क्षीरमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा, (गर्जन कर शीघ्र हो विद्युत्युक्त होगा, विद्युत्युक्त होकर)शीघ्र ही युग, मूसल और मुष्टि (परिमित धाराओं से सर्वत्र एक सदृश) सात दिन-रात तक वर्षा करेगा। यों वह भरतक्षेत्र की भूमि में शुभ वर्ण, शुभ गन्ध, शुभ रस तथा शुभ स्पर्श उत्पन्न करेगा, जो पूर्वकाल में अशुभ हो चुके थे। उस क्षीरमेघ के सात दिन-रात बरस जाने पर घृतमेघ नामक महामेध प्रकट होगा। वह लम्बाई, चौड़ाई और विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा। वह घृतमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा, वर्षा करेगा। इस प्रकार वह भरतक्षेत्र की भूमि में स्नेहभाव-स्निग्धता उत्पन्न करेगा। उस घतमेघ के सात दिन-रात तक बरस जाने पर अमृतमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई, (चौड़ाई और विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा / वह अमृतमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र हो गर्जन करेगा, गर्जन कर शीघ्र ही विद्युत्युक्त होगा, युग, मूसल तथा मुष्टि-परिमित धारामों से सर्वत्र एक जैसी सात दिन-रात) वर्षा करेगा / इस प्रकार वह भरतक्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण-घास, पर्वग---गन्न प्रादि, हरित-हरियालो-दूब आदि, औषधि-जड़ी-बूटी, पत्ते तथा कोंपल आदि बादर वानस्पतिक जीवों को-वनस्पतियों को उत्पन्न करेगा / __उस अमृतमेघ के इस प्रकार सात दिन-रात बरस जाने पर रसमेध नामक महामेघ प्रकट होगा / वह लम्बाई, (चौड़ाई और विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा। फिर वह रसमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा / गर्जन कर शीघ्र ही विद्युत् युक्त होगा / विद्युत्युक्त होकर शीघ्र ही युग, मूसल तथा मुष्टि-परिमित धाराओं से सर्वत्र एक जैसी सात दिन-रात) वर्षा करेगा। इस प्रकार बहुत से वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण, पर्वग, हरियाली, औषधि, पत्ते तथा कोंपल आदि में तिक्त-तोता, कटुक--कडुअा, कषाय-कसैला, अम्ल-खट्टा तथा मधुर-मीठा, पाँच प्रकार के रस उत्पन्न करेगा-रस-संचार करेगा। तब भरतक्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण, पर्वग, हरियाली, औषधि, पत्ते तथा कोंपल आदि उगेंगे। उनकी त्वचा-छाल, पत्र, प्रवाल, पल्लव, अंकुर, पुष्प, फल, ये सब परिपुष्ट होंगे, समुदित-सम्यक्तया उदित या विकसित होंगे, सुखोपभोग्य-सुखपूर्वक सेवन करने योग्य होंगे। सुखद परिवर्तन 46. तए णं से मणुमा भरहं वासं परूढरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पन्वय-हरिप्रप्रोसही, उवचियतय-पत्त-पवाल-पल्लवंकुर-पुप्फ-फल-समुइअं, सुहोवभोगं जायं 2 चावि पासिहिति, पासित्ता बिलहितो गिद्धाइस्संति, णिद्धाइत्ता हट्ठतुट्ठा अण्णमण्णं सहाविस्संति, सद्दावित्ता एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org