Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-6-0 - 0 卐 3 // अथ धूताध्ययनम् // पांचवा अध्ययन पूर्ण हुआ, अब छट्टे अध्ययन का प्रारंभ करते हैं... इस अध्ययन का पांचवे अध्ययन के साथ इस प्रकार संबंध है कि- पांचवे अध्ययन में लोक के सार स्वरूप संयम और मोक्ष का वर्णन कीया... किंतु वह संयम और मोक्ष नि:संग होने के बिना और कर्मो के क्षय के बिना हो हि नहि शकता, इसलिये यहां नि:संगता और कर्मो का क्षय होने का स्वरूप कहा जाएगा... इस प्रकार के संबंध से आये हुए इस अध्ययन के चार अनुयोग द्वार कहते हैं... उनमें उपक्रम-द्वार में दो अर्थाधिकार हैं... 1. अध्ययनार्थाधिकार, 2. उद्देशार्थाधिकार... इन दोनों में भी अध्ययन का अर्थाधिकार पहले कह चूके हैं; अतः अब उद्देशार्थाधिकार नियुक्तिकार स्वयं हि कहतें हैं... नि. 250 पहले उद्देशक में - अपने आपके स्वजनों का यथाविधि परित्याग.. * दुसरे उद्देशक में - कर्मो की निर्जरा... लीसरे उद्देशक में - वस्त्र-पात्रादि उपकरण एवं शरीर का यथाविधि त्याग... चौथे उद्देशक में - तीन गारव का त्याग... पांचवे उद्देशक में - उपसर्ग एवं सन्मान का विधूनन... अब निक्षेप कहते हैं... वह तीन प्रकार से हैं... 1. ओघनिष्पन्न निक्षेप में - अध्ययन पद 2. नामनिष्पन्न निक्षेप में - धूत - शब्द 3. सूत्रालापक निष्पन्न निक्षेप मे... सूत्र के पद... नामनिष्पन्न निक्षेप में "धूत' शब्द के चार निक्षेप होतें हैं 1. नाम धूत, 2. स्थापना धूत, 3. द्रव्य धूत, 4. भाव धूत... इन चारों में नाम एवं स्थापना निक्षेप सुगम है; अत: द्रव्य एवं भाव निक्षेप का स्वरूप आगे की गाथा से कहते हैं... नि. 251 द्रव्य धूत दो प्रकार से है... 1. आगम से, 2. मोआगम से... 1. आगम से द्रव्य धूत - धूतशब्दार्थ का ज्ञाता किंतु अनुपयुक्त 2. नोआगम से द्रव्य धूत - ज्ञ शरीर, भव्य शरीर, तद्व्यतिरिक्त... नोआगम से तद्व्यतिरिक्त - रजःकण को दूर करने के लिये वस्त्रादि का विधूनन द्रव्य धूत है... आदि पद से फल के लिये वृक्ष का धूनन... भावधूत-आठ प्रकार के कर्मों का विधूनन... प्रस्तुत अध्ययन में इसी भावधूत का