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- श्री आचारांगसूत्रम्
दारुण दुख से शास्त्र जिन, करते मुक्त हमेश। जग में उपकारी महा, जो-जो वचन जिनेश ।।८३ ।। आगम दीपक साथ में, दुर्मति गिरे न कूप। पहुँचे शिव निर्विघ्न हो, बनता अविचल भूप।।८४।। आगम अमृत कुण्ड में, करते भव्य नहान। जन्म-जन्म के रोग दुख, हो जाते अवसान।।८५ ।। आप्तजनों का कथन ही, जैनागम कहलाय। सीधे-सादे वचन पर, देना ध्यान लगाय।।८६ ।। वर्तमान जिनवर नहीं, उत्तम आरा नाय । जिन आगम जिन बिम्ब ही, निश्चय मुक्ति उपाय।।८७।। जन्म-मरण का दुक्ख भय, महितल में चहुँ ओर। केवल आगमज्ञान से, पा जायेगा छोर ।।८८।।
सूत्रकार स्तुति गणधर सुधर्मास्वामिन्, प्रातः स्मरणीय। जैनागम रचना अहा! जन-जन आचरणीय।।८९ । । अग्नि वैश्यायन गोत्र शुभ, ब्राह्मण कुल विख्यात । सन्निवेश कोल्लागपुर, पावन भू प्रख्यात ।।९० ।। धन्य-धन्य धम्मिल पिता, धन्य भदिला अम्ब । पुण्यवान भूषण अहो ! विश्व धरा स्तम्भ ।।९१ ।। प्रभु मुख से संयम लिया, शिष्य पाँच सौ साथ। दीर्घ आयु पाकर अहो! शासन किया सनाथ ।।९२।। जगत्बन्धु वर्द्धमान प्रभु, मोक्षगमन पश्चात् । संघ-स्यन्दन सारथी, हो चिन्तन अवदात।।९३ ।। आगम सारे आपके, गुम्फित गणधर राज। नाम अमर द्वय लोक में, जिनशासन सरताज।।९४।।