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पद्यमय भावानुवाद
मूलसूत्रम् -
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सर्वसम्मत हिंसा जहाँ, अन्य धर्म अनुसार । मौन साध रत धर्म में, ये ही मुनि आचार ।। • धर्म वृद्धि
व गामेणेव रण्णे धम्ममायाणह ।
पद्यमय भावानुवाद
नहीं धर्म है विपिन में, नहीं धर्म है ग्राम । धर्म प्रकट है आत्म में, श्री जिन वचन ललाम ।।
दूसरा उद्देशक
• अकल्पनीय परित्याग
श्री आचारांगसूत्रम्
मूलसूत्रम् -
सेभिक्खू परिक्कमिज्ज वा जाव हुरत्था वा कहिंचि विहरमाणां तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावई आयगयाए पेहाए असणं वा 4 वत्थं वा 4 जाव आहट्टु चेएइ आवसहं वा समुस्सिणाई भिक्खू परिघासेडं, तं च भिक्खू जाणिज्जा सहसम्मइयाए परवागरणेणं अन्नेसिं वा सुच्चा - अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं वा 4 वत्थं वा 4 जाव आवसहं वा समुस्सिणाइ, तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणा त्ति बेमि ।
पद्यमय भावानुवाद
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चाहे मरघट में रहो, चाहे विपिन विहार । चाहे पुर अरु ग्राम में, समतामय अणगार । । १ । । भक्तिभाव के वश हुआ, आये मुनि के पास । भोजन चार प्रकार का, अरज बनाया खास ।। २ ।।