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श्री आचारांगसूत्रम्
•विहार-विधि. मूलसूत्रम्
चक्खुमासज्ज अंतसो झाई। पद्यमय भावानुवाद
जिनवर तिरछी भीत पर, देते नेत्र टिकाय। देखें अंतर आतमा, ध्यान किया मन लाय।।
• गृहस्थ-परिचय निषेध. मूलसूत्रम्
जे के इमे अगारत्था, मीसीभावं पहाय से झाई। पुट्ठो वि णाभिभासिंसु, गच्छइ णाइवत्तइ अंजू।।
•छन्द कुंडलिया. करे न परिचय गृहस्थ से, लीन सदा शुभ ध्यान। संभाषण करते नहीं, वर्द्धमान भगवान।।१।। वर्द्धमान भगवान, निजी कार्य हित जाते। पृच्छा पर भी मौन, नहीं करते थे बातें।।२।। अतिक्रमण से रहित, जिन मोक्षमार्ग प्रस्थान। करें न परिचय गृहस्थ, वे रमण करें शुभ ध्यान।।३।।
• श्री वीर विभु दिनचर्या . मूलसूत्रम्
णो सुकरमेयमेगेसिं, णाभिभासे य अभिवाय माणे।
हयपुव्वे तत्थ दंडेहिं, लूसियपुव्वे अप्पपुण्णेहिं।। पद्यमय भावानुवाद
लाखों वन्दन कर रहे, उनसे करें न बात। ऐसी रहनी सरल नहिं, कठिन मार्ग सिद्धान्त।।१।।