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श्री आचारांगसूत्रम्
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पद्यमय भावानुवाद
मार-पीट कर बोलते, मारो-मारो नंग। सहें परीषह विविध विध, हिय में क्षमा-तरंग।।१।। महावीर की देह से, नोंचा मांस अनार्य। खड़े ध्यान में वीर प्रभु, यह पहले का कार्य।।२।। अब ये भूकें देह पर, कभी फेंक दें धूल। सहनशील प्रभु वीर को, लगें शूल भी फूल।।३।। बैठें जब प्रभु ध्यान में, ऊँचा देत उछाल। फिर पटके नीचे उन्हें, देर नहीं तत्काल।।४।। किन्तु प्रतिज्ञाबद्ध थे, महावीर भगवान।
अतः न डिगते थे कभी, सहनशील मतिमान।।५।। मूलसूत्रम्
सूरो संगामसीसे वा संवुडे तत्थ से महावीरे। पडिसेवमाणो फरूसाइं अचले भगवं रीइत्था।। एस विही अणुक्कतो माहणेण मई मया।
बहुसो अपडिण्णणं भगवया एवं रीयंति।। पद्यमय भावानुवाद
समर भूमि योधा लड़े, कवच पहनकर वीर। पहने संवर का कवच, इधर डटे प्रभु वीर।।१।। निश्चल रहकर ध्यान में, जीते कष्ट अपार। अविचलता ले जा रही, भवसागर के पार।।२।। ऐसा कहता मैं सुनो, तुम जम्बू धर ध्यान। मुक्त प्रतिज्ञा से रहे, महावीर मतिमान।।३।।