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नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत
मूलसूत्रम् -
चौथा उद्देशक
• चिकित्सा परिहार •
ओमोदरियं चाएति अपुट्टे वि भगवं रोगेहिं । पुट्ठे वा से अपुढे वा णो से सातिज्जती तेइच्छं ।।
पद्यमय भावानुवाद
स्वस्थ निरोगी थे यदपि, तो भी अल्पाहार । तप जीवन का अंग था, औषध का परिहार । ।
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मूलसूत्रम् -
संसोहणं च वमणं च गायब्भंगणं सिणाणं च । संबाहणं न से कप्पे दंतपक्खालणं परिण्णाए । । पद्यमय भावानुवाद
वमन विरेचन परिकर्म, मदर्न - मज्जन- त्याग । मंजन दाँतों का नहीं, नहीं देह - अनुराग ।।
मूलसूत्रम् -
मूलसूत्रम् -
विरते य गामधम्मेहिं रीयति माहणे अबहुवादी । सिसिपि एगदा भगवं छायाए झाइ आसी य । पद्यमय भावानुवाद
इन्द्रिय-विषयों से विरत, करते विचरण वीर । शिशिर - शीत छाया रहें, हुए न कभी अधीर । । १ । । मौन रहें बोलें नहीं, परमहंस अवधूत | जब भी बोलें बहुत कम, वे त्रिशला के पूत । । २ । । तप एवं आहार •
आयावई य गिम्हाणं अच्छइ उक्कुडए अभिवाते । - अदु जावइत्थं लूहेणं ओयण-मंथु - कुम्मासेणं । ।