________________
नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत
*१५१ *
-.
-.
मूलसूत्रम्
अकसायी विगयगेही य राह-रूवेसुऽमुच्छिए झाति।
छउमत्थे वि परक्कममाणे ण पमायं सई पि कुवित्था।। पद्यमय भावानुवाद
क्रोध आदि से मुक्त हो, आसक्ति से हीन। डूबे रहते ध्यान में, गहरे जल ज्यों मीन।।१।। छद्म अवस्था प्रभु रहे, मुझको है यह याद।
एक बार कीन्हा नहीं, प्रभु ने कभी प्रमाद।।२।। मूलसूत्रम्
सयमेव अभिसमागम्म आयतजोगमायसोहीए।
अभिणिव्वुडे अमाइल्ले आवकहं भगवं समिआसी।।६९।। पद्यमय भावानुवाद
संयत मन-वच-काय से, किये कषाय उपशान्त। समिति-गुप्ति से युक्त हो, सदा रहे निर्धान्त ।।१।। आत्म-शुद्धि की साधना, की जीवन-पर्यन्त । ध्यान-योग अद्भुत रहा, महाश्रमण प्रभु संत।।२।। उनकी जो साधन विधा, की प्रभु ने उपदिष्ट। कठिन साधना दे गये, श्रमण जनों को इष्ट।।३।। ।।इति श्री आचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध का
पद्यमय भावानुवाद पूर्ण हुआ।।