Book Title: Acharang Sutram
Author(s): Vijaysushilsuri, Jinottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 190
________________ * १५२ *---------------------- *१५२* श्री आचारांगसूत्रम् ६ मंगलमय-प्रशस्ति । पाण्डव समिति गगन भुजा', थिर कारक शनिवार। माघ धवल तिथि चार दश, जय-जय मंगलचार।।१।। श्री अष्टापद तीर्थपति, श्री आदिनाथ भगवन्त । अंजनशलाका-प्रतिष्ठा, 'रानीपुर' दीपन्त ।।२।। लुप्त तीर्थ अति समय से, प्रकट हुआ कलिकाल। भरतदेश सौभाग्य यह, होंगे भव्य निहाल ।।३।। चमत्कार हो रात-दिन, हो अनुभव प्रत्यक्ष। इष्टायक जागृत सदा, दर्शन कर लो दक्ष।।४।। अहो जिनालय मध्य में, बरस रही अमि धार। मनहुँ देवघन अभिषेक, करने को तैयार ।।५।। शानदार संतोषमय, सुरपुर दृश्य ललाम। । अहो प्रतिष्ठा हो रही, 'रानीपुर' सुख-धाम।।६।। युगप्रधान आचार्य सम, शासन शुभ सम्राट् । श्रीमद् ‘विजय नेमि सूरीश्वर' वन्दन कोटि अपार ।।७।। शास्त्र विशारद कविरत्न, साहित्य शुभ सम्राट्। व्याकरणे वाचस्पति, 'लावण्य' सूरि विख्यात ।।८।। शास्त्र विशारद संयमी, व्याकरण रत्न महान्। काव्य दिवाकर 'दक्ष सूरि', मम अग्रज विद्वान् ।।९।। सूरि 'सुशील' सौभाग्य से, इनका मिला प्रभाव। जिससे नव-नव कार्य हो, सूरि 'सुशील' अति चाव।।१०।। सूरि 'जिनोत्तम' शिष्यमणि, इनका अति सहयोग। श्री आचारांगसूत्र पर, लिखे पद्य उपयोग।।११।। 1. २०५५

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