Book Title: Acharang Sutram
Author(s): Vijaysushilsuri, Jinottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 182
________________ * १४४ * मूलसूत्रम् - एलिक्खए जणे भुज्जो बहवे वज्जभूमि फरूसासी । लट्ठि गहाय णालीयं समणा तत्थ एव विहरिंसु । । पद्यमय भावानुवाद छह महिने विचरे प्रभो, वज्रभूमि के देश । अन्य श्रमण लाठी रखें, नहिं कुत्तों का क्लेश । । - मूलसूत्रम् - एवं पि तत्थ विहरंता पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणएहिं । संलुंचमाणा सुणएहिं दुच्चरगणि तत्थ लाढेहिं । । पद्यमय भावानुवाद लाठी वाले श्रमण भी, बच नहिं पाते तात । उनको भी वे काटते, करते उन पर घात । । मूलसूत्रम् - श्री आचारांगसूत्रम् मूलसूत्रम् - णिहाय डंड पाणेहिं तं कायं वोसज्ज मणगारे | अह गामकंटए भगवं ते अहियासए अभिसमेच्चा ।। पद्यमय भावानुवाद मन-वाणी अरु कर्म का, तीन योग प्रतिकार । कभी न दीन्हा दण्ड प्रभु, यद्यपि सहे प्रहार । । --- णागो संगामसीसे वा पारए तत्थ से महावीरे । एवं पि तत्थ लाढेहिं अलद्धपुव्वो वि एगया गामो ।। पद्यमय भावानुवाद युद्ध - भूमि से नहिं हटे, घायल हो गजराज । मथ-मथ मारे सैन्यदल, होता गज पर नाज । । १ । ।

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