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मूलसूत्रम् -
एएहिं मुणी सयणेहिं समणे आसि पतेरसवासे । राइ दिवं पि जयमाणे अप्पमत्ते समाहिए झाइ । ।
पद्यमय भावानुवाद
महाश्रमण इन वास गृह, बीता साधन काल । संयत- स्थिर रात-दिन, अविचल मन की चाल । । १ । ।
साढ़े बारह वर्ष अरु संग दिवस दस - पाँच।
,
डूबे रहते ध्यान में, सुन जम्बू यह साँच । । २ । । • अति निद्रा निषेध •
मूलसूत्रम्
श्री आचारांगसूत्रम्
णिद्दं पि णो पगामाए, सेवइ भगवं उट्ठाए । जग्गावइ य अप्पाणं, ईसिं य अपडिण्णे ।।
पद्यमय भावानुवाद
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महावीर भगवन्त ने निद्रा लीन्ही अल्प । रात-दिवस जागृत रहे, नहिं सोना ही कल्प । । १ । । कभी सताये नींद तो, खड़े हुए तत्काल । रहे अहर्निश ध्यान में, जिसकी नहीं मिसाल । । २ । । • निद्रा विजय •
मूलसूत्रम् -
संबुज्झमाणे पुणरवि आसिंसु भगवं उट्ठाए । णिक्खम्म एगया राओ बहिं चंकमिया मुहुत्तागं । ।
पद्यमय भावानुवाद
सतत ध्यान के कारणे, निद्रा लीन्हीं जीत । निद्रा - विजयी वीर प्रभु, वर्षा हो या शीत । । १ । । क्षणभर को ही नींद ले, जगकर करते ध्यान । पल दो पल को घूमकर, आ बैठें भगवान । । २ । ।