Book Title: Acharang Sutram
Author(s): Vijaysushilsuri, Jinottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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* १३६ *
मूलसूत्रम्
पद्यमय भावानुवाद
जस्सित्थओ परिण्णाया, सव्वकम्मावहाओ से अदक्खू ।
मूलसूत्रम् -
काम-भोग जड़ पाप की, जानें त्रिशलानंद । विषय बढ़ाती कामिनी, त्यागा नारी - फन्द ।।
आहार विवेक
पद्यमय भावानुवाद
आत्मदर्शी
अहाकडं ण से सेवे सव्वसो कम्मुणा य अदक्खू । जं किंचि पावगं भगवं तं अकुव्वं वियडं भुंजित्था । ।
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मूलसूत्रम्
श्री आचारांगसूत्रम्
दोषयुक्त आहार है, कर्मबंध कल्पनीय आहार बिन, मिले न त्याज्य अशन है दोष युत, हो अघ आधा कर्म । महावीर प्रभु जानते, शुद्ध अशन का मर्म । । २ । । आधाकर्मी दोष का, करे श्रमण परिहार । मुनि 'सुशील' प्रासुक अशन, जिनशासन व्यवहार । । ३ । । आहार की मात्रा
पद्यमय भावानुवाद
का हेतु ।
साधन - सेतु । । १ । ।
मायणे असण पाणस्स ।
कितना भोजन चाहिए, रखते जिनवर ध्यान । नहीं अधिक परिमाण से, अशन लिया भगवान । । १ । ।
शुद्ध अशन परिमाण का, रखते थे प्रभु ख्याल । डट - डटकर भोजन करें, मुनि 'सुशील' इस काल । । २ । ।

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