________________
नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत
मूलसूत्रम् -
दूसरा उद्देशक
शयन और आसन •
* १३७ *
चरियासणाइं सेज्जाओ एगतियाओ जाओ बूझ्याओ । आइक्ख ताइं सयणासणाई जाई सेवित्था से महावीरे ।।
पद्यमय भावानुवाद
निज आँखों देखा कहा, करके पिछला याद । जम्बू और सुधर्म का, चलता यह संवाद । । १ । । कहे आपने एक दिन, आसन शय्या - वास । आज पुनः बतलाइए, नाम वास कुछ खास ।। २ ।। मूलसूत्रम् -
आवेसण-सभा-पवासु पणियसालासु एगदा वासो । अदुवा पलियाट्ठाणेसु पलालपुंजेसु एगदा वासो ।। आगंतारे आरामागारे नगरे वि एगया वासो । सुसाणे सुण्णगारे वा रुक्खमूले वि एगया वासो । । पद्यमय भावानुवाद
कहें सुधर्मा शिष्य से, सुन जम्बू धर ध्यान । सोये-बैठे किस तरह, महावीर भगवान । । १ । । एक जगह ठहरे नहीं, महावीर भगवान । धर्मशाल अरु खण्डहर, या फिर कभी दुकान । । २ । । लुहार आदि के कर्मगृह, सोनी और सुथार । छप्पर नीचे भी सहीं, शीतल तप्त बयार । । ३ । ।
पथिक-वास विश्रामगृह, नगर या कि हो ग्राम । सूने घर मरघट कभी, या तरु नीचे ठाम । ।४।।