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नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत
पद्यमय भावानुवाद
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(गीतिका)
बाहर पूछा कभी किसी ने कौन खड़ा है भीतर । मैं अनिकेती भिक्षु श्रमण हूँ, दिया स्वल्प यह उत्तर । । १ । । भागो चलो यहाँ से जाओ, त जाते प्रभु चुपचाप । क्रोध-बोध का लेश न 'उनमें, कि रमण आपु में आप । । २ । । शीत-कष्ट विजेता महावीर •
मूलसूत्रम् -
जंसिप्पेगे पवेयंति सिसिरे मारुए पवायंते । तंसिप्पे अणगारा हिमवाते णिवायमे संति । । संघाडीओ पविसिस्सामो एहा य समादहमाण । पिहिया वा सक्खामो 'अतिदुक्खं हिमग-संफासा' ।। तंसि भगवं अपडणे अहे वियडे अहियासए दविए । णिक्खम्म एगया राओ चाएइ भगवं समियाए । । पद्यमय भावानुवाद
बजें दाँत से दाँत अरु, शीत कँपाये गात । ठिठुराये शीत बयार, शिशिर शीत विख्यात । । १ ।। तब कहे गृही की कौन, ठिठुराते अनगार । वे खोजें ऐसी आड़, लगे न शीत बयार । । २ ।। साधु-संत तब सोचते, कैसे करें बचाव । कंबल में घुस जायेंगे, या फिर जले अलाव । । ३ । ।
छन्द कुंडलिया
गाढ़े शीत बचाव का, सोचा नहीं जुगाड़ । समता में सर्दी सहें, घर जो बिना किवाड़ ।। घर जो बिना किवाड़, हवा चलती बर्फीली । डिन प्रभु का धीर, डिगाये ठंड हठीली ।।