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नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत
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• उपसर्ग-उत्पात. मूलसूत्रम्
सयणेहिं तस्सुवसग्गा भीमा आसी अणेगरूवा य। संसप्पगा य जे पाणा अदुवा पक्खिणो उवचरंति।। अदु कुचरा उवचरंति गामरक्खा य सत्तिहत्था य।
अदु गामिया उवसग्गा इत्थी एगतिया पुरिसा य।। पद्यमय भावानुवाद
क्या बीते प्रभु वीर पर, ध्यान-विघ्न उत्पात। वीर सहे उपसर्ग सब, सुन लो जम्बू तात।।१।। डूबे हों जब ध्यान में, महाश्रमण प्रभु वीर। नकुल-सर्प काटें उन्हें, तबहु न व्यापी पीर।।२।। आमिष-भोजी गिद्ध भी, नोंचे उनका माँस। सहनशील थे गजब के, नहिं पीड़ा की साँस ।।३।। नर-तन-धारी दुष्ट भी, करते अति उत्पात। अस्त्र-शस्त्र ले हाथ में, फिर-फिर करते घात।।४।। कोतवाल इनमें रहें, और ग्राम के रक्षक। रक्षक ही थे बन गये, महाश्रमण के भक्षक।।५।। काम पीड़िता नारियाँ, आतीं प्रभु के पास। वे भी पीछे नहिं रहीं, देती प्रभु को त्रास ।।६।।
• स्थान परीषह विजय. मूलसूत्रम्
इहलोइयाई परलोइयाइं भीमाई अणेगरूवाइं।
अवि सुब्भि-दुब्भिगंधाई सद्दाइं अणेगरूवाई।। पद्यमय भावानुवाद- --
पशु-पक्षी नर लोक के, और देव सुरलोक। सब कष्टों में सम रहे, नहीं हर्ष नहिं शोक।।१।।