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नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत
. • परिचय : पूर्वपाठ. अन्तिम है संवाद यह, कहा गया 'उपधान'। श्रोता 'जम्बू स्वामि' से, कहा जु सुधर्म' महान।।१।। शिरोधान/तकिया रहे, सिर-नीचे 'उपधान'। साधन के अवलंब को, उसी तरह लो जान।।२।। इस अध्ययन के पाठ हैं, या उद्देशक चार। क्रमशः जानो तात अब, तुम चारों का सार।।३।। पहले उद्देशक लखो, प्रभु-चर्या के रूप। कहे दूसरे पाठ में, सेवित थान अनूप।।४।।
और तीसरे सर्ग में, पीड़ा के कुछ मर्म। .. मनहु अग्नि-पथ दौड़ना, महावीर का धर्म।।५।। अन्तिम चौथा पाठ है, व्याधि-चिकित्सा-सर्ग। पग-पग पाये वीर प्रभु, भाँति-भाँति उपसर्ग।।६।।
पहला उद्देशक
• दीक्षा और विहार. मूलसूत्रम्
अहासुयं वदिस्सामि जहा से समणे भगवं उद्याय।
संखाये तंसि हेमंते अहुणा पव्वइए रीयत्था।। पद्यमय भावानुवाद
सुन जम्बू कहता तुम्हें, बोले स्वामि सुधर्म। दीक्षा तथा विहार-प्रभु, अरु चर्या का कर्म।।१।। नेह-गेह अरु कुण्डपुर, त्याग चले संसार । हिमऋतु दीक्षा वरण कर, आगे किया विहार।।२।।