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सातवाँ अध्ययन : महापरिज्ञा
पहले से सात उद्देशक
श्रीमद् नन्दीसूत्र की श्रीमलयगिरि टीका और नियुक्ति के अनुसार यह अध्ययन सदा के लिए विच्छिन्न है, अर्थात् आजकल उपलब्ध नहीं है।
•छन्द दोहा. महापरिज्ञा सातवाँ, अध्ययन अब विच्छिन्न । जिससे पाठक वृन्द का, होता है मन खिन्न ।।१।। बहु विद्या से युक्त था, मन्त्र यन्त्र भण्डार। दुरुपयोग होने लगा, इससे लुप्त विचार ।।२।।
आठवाँ अध्ययन : विमोक्ष
पहला उद्देशक ,
•अन्ध श्रद्धा. मूलसूत्रम्
मामगं धम्मं पण्णवेमाणा। पद्यमय भावानुवाद
अपने-अपने धर्म को, श्रेष्ठ बताते लोग। मण्डन अपने पक्ष का, नहीं सत्य आलोक।।
.. .पाप वर्जित. मूलसूत्रम्
सवत्थसम्मयं पावं।