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आठवाँ अध्ययन : विमोक्ष
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•बन्धन रवण्डन. मूलसूत्रम्
गंथेहिं विवित्तेहिं। पद्यमय भावानुवाद
निश्चित ही जो मुक्त है, बन्धन दोउ प्रकार। मुनि 'सुशील' संसार से, हो जायेगा पार।।
.आर्य-कार्य. मूलसूत्रम्
पग्गहियतरंगं चेयं, दवियस्स वियाणओ। पद्यमय भावानुवाद
महाव्रती गीतार्थ मुनि, करते उत्तम काम। इंगितमरण सुग्रहण कर, पाते अविचल धाम।।
•विषय-ग्लानि. मूलसूत्रम्
इंदिएहिं गिलायंते, समियं आहरे मुणी। पद्यमय भावानुवाद
होती ग्लानि श्रमण को, इन्द्रिय विषय विलास। साम्यभाव मन में धरे, करता आत्म-विकास।।
• यत्नाधर्म. मूलसूत्रम्
संकुचए पसारए। पद्यमय भावानुवाद
परमार्जन पहले करो, रजोहरण कर धार। लेना अंग सिकोड तू, अथवा अंग पसार।।