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प्रथम अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा
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पद्यमय भावानुवाद
साधक जो आचार में, रमण करे नहिं क्रूर। वह हिंसा करता सदा, हो संयम चकचूर।।
• वर्तमान दशा. मूलसूत्रम्
आरंभमाणा विणयं वयंति। पद्यमय भावानुवाद
हिंसा में अनुरक्त नित, दे संयम उपदेश । यही आश्चर्य हो रहा, कैसे वे श्रमणेश।।
•आसक्त श्रमण. मूलसूत्रम्
छंदोवणीया अज्झोववण्णा। पद्यमय भावानुवाद
विषयों में आसक्त नित, निज इच्छा अनुसार। पापकर्म करते रहें, कैसे वे अणगार।।
• दुरित द्वार. मूलसूत्रम्
आरंभसत्ता पकरंति संगं। पद्यमय भावानुवाद
आरम्भ में आसक्त हो, इच्छा और बढ़ाय। नये-नये बन्धन बढ़ा, पापकर्म लिपटाय।।