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पाँचवाँ अध्ययन : लोकसार
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• संवर फलादेश. मूलसूत्रम्
विप्पमुक्कस्स णत्थि मगो विरयस्स। पद्यमय भावानुवाद
तन-धन अरु परिवार से, जिनका मोह विनष्ट। मुनि 'सुशील' पायें वही, अन्तिम फल जो इष्ट।।१।। संवर से मंडित मनुज, नरक तिर्यंच न जाय। सार तत्व उपदेश यह, श्री जिनवर फरमाय।।२।।
• परिग्रह फलादेश. मूलसूत्रम्
एगेसिं महब्भयं भवइ। पद्यमय भावानुवाद
एक परिग्रह विश्व में, करता भय उत्पन्न ।
और परस्पर कलह हो, देह प्राण हो भिन्न।।१।। एक परिग्रह विश्व में, पहुँचाता संताप। सारे रिश्ते खत्म हों, बढ़ता महितल पाप।।२।। मूर्छा या आसक्ति जब, होइ वस्तु में तात। कारण वस्तु ममत्व है, संग्रह की सौगात ।।३।।
.आत्म-विज्ञान. मूलसूत्रम्से सुपडिबद्धं सूवणीयंति णच्चा पुरिसा परमचक्खू विपरक्कम, एएषु चेव बंभचेरं ति बेमि।। पद्यमय भावानुवाद
मोक्ष दृष्टि सम्पन्न तू, कर ऐसा पुरुषार्थ । भयं महा यह जानकर, त्याग परिग्रह स्वार्थ ।।१।।