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श्री आचारांगसूत्रम्
• क्षभंगुर दशा. मूलसूत्रम्बहुदुक्खा हु जंतवो, सत्ता कामेसु माणवा, अबलेण वहं गच्छति सरीरेण पभंगुरेण अट्टे से बहुदुक्खे इइ बाले पकुव्वइ एए रोगा बहूणच्चा आउरा परियावए णालं पास, अलं तवेएहिं, एयं पास मुणी ! महब्भयं णाइवाइज्ज कंचणं। पद्यमय भावानुवाद
नाना जीव जहान में, पाते दुख दिन-रात। अनुकम्पा उन पर करो, सौ की है इक बात।।१।। मोहित विषय-विलास में, क्षणभंगुर नरदेह। कब जाने किस समय में, हो जायेगा खेह।।२।। अल्प सुखों के हित करे, बहु जीवों की घात। महा मूढ़ कैसे अरे, पायेगा सुख भ्रात।।३।। नाना होंगे रोग जब, व्याकुल हो दिन-रैन। पापों को भोगे बिना, कब पायेगा चैन।।४।। रोग मिटाने के लिए, हिंसा से उपचार । करते मानव मूढ़ जो, निशदिन बारम्बार ।।५।। हिंसा से दुख उदय हो, यही सनातन रीति। मुनि 'सुशील' जिन वचन पर, कर ले दृढ़ परतीति।।६।।
.कर्म और चिकित्सा. समर्थ चिकित्सा है तभी, कर्म शान्त हो जाय। क्यों करता है पाप तू, करता मूढ़ उपाय।।७।। महान् भय कारण अरे, हिंसा का उपचार। यही जान अघकार्य का, कर लेना परिहार।।८।।