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पाँचवाँ अध्ययन : लोकसार
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कारण विषयासक्ति है, जन्म-मरण का योग । ज्ञानी विषय न चाहता, त्यागे सब ही भोग । । ३ । ।
कर्मों से जो रहित हो, पाता अविचल धाम । मुनि 'सुशील' जिनवर वचन, बतलाता निष्काम ।।४।। • आत्मदशा
मूलसूत्रम् -
अच्चेइ जाइमरणस्स वट्टमग्गं विक्खायरए, सव्वे सराणियदृति, तक्का तत्थण विज्जइ, मई तत्थ ण गाहिया, ओए, अप्पइट्ठाणस्स खेयण्णे, सेदी हस्से ण वट्टे ण तंसे ण चउरंसे ण परिमंडले, ण किण्हे
ण
नीले ण लोहिए ण हालिद्दे ण सुक्किल्ले, ण सुरभि गंधे ण दुरभि गंधे, तिकडु ण कसाए ण अंबिले ण महुरे ण लवणे, कक्खडे ण मउए ण गुरुए ण लहुए ण उण्हे ण एहे ण गिद्धे ण लक्खेण काउण रूहे ण संगे, ण इत्थी ण पुरिसे ण अण्णा, परिण्णे सणे, उवमा ण विज्जइ, अरूवी सत्ता, अपयस्स पयं णत्थि ।
पद्यमय भावानुवाद
जन्म-मरण के मार्ग से, हो जायेगा पार । कारण केवल कर्म का, कर ले बंटाढार । । १ । । मुक्त जीव अनुभूति है, वर्णन परे अतीत । नहीं तर्क का विषय यह, गा न सके मति गीत । । २ । । जीव अकेला मोक्ष में, नहीं गोल त्रयकोण । नहीं रंग नीलादि भी, नहिं भाषा नहिं मौन । । ३ । । षट् रस भी वहँ हैं नहीं, तथा न लेश्यावान । नहीं लिंग का भेद है, नहीं नियम उपमान । । ४ । । सत्ता रूपविहीन पद, नहीं विषय का गान । सर्व चराचरं वस्तु को देख रहे भगवान । । ५ । ।