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पद्यमय भावानुवाद
श्री आचारांगसूत्रम्
करे न मेधावी पुरुष, अतिक्रमण आदेश । चिन्तन-मनन विचारकर, जाने सत्य जिनेश । । १ । । तुलना और विवेक से, कर जैनेतर ज्ञान । असत् त्याग सत् ग्रहण कर, सत् जिनवर फरमान । । २ । । संयम को स्वीकार कर, आत्मरमण में लीन । कर्म विदारण कीजिए, कि वीर पुरुष प्रवीन । । ३ । । पराक्रम करते रहो, आगम के अनुसार । मन - इन्द्रिय को वश करो, पाओ शिवगति द्वार । ।४ ।। आस्रव मार्ग
मूलसूत्रम्
उड्डुं सोया अहे सोया, तिरियं सोया वियाहिया । ए ए सोया विक्खाया, जेहिं संगति पासहा ।। पद्यमय भावानुवाद
अधो ऊर्ध्व तिरछी दिशा, कर्मास्रव के द्वार । पापबन्ध होता अरे, कर ले तनिक विचार । । • मोक्ष मार्ग
मूलसूत्रम् -
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आवट्टं तु पेहाए इत्थ विरमिज्ज वेयवी । विणइत्तु सोयं णिक्खम्म एसमहं अकम्मा जाणइ पासइ पडिलेहाए णावकखइ इह आगई गई परिण्णाय ।
पद्यमय भावानुवाद
आतम ज्ञानी पुरुष ही, रोके स्रोत कषाय । चिन्तन-मनन विचार कर, आस्रव मुक्त कहाय । । १ । । करे निष्क्रमण स्रोत का, कभी न व्यापे शोक । होइ अकर्मा श्रमण वह, जाने देखे लोक । । २ । ।