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श्री आचारांगसूत्रम्
षट् द्रव्यों के कथन में, नरक-स्वर्ग संसार। फरमाया जिनवर यही, सत्य तथ्य स्वीकार ।।२।। षट्कायिक वर्णन किया, सदा सत्य हैं तत्त्व। यह श्रद्धा मजबूत तब, नर-भव यही महत्त्व।।३।। जिन मन्दिर जो स्वर्ग में, फरमाया भगवन्त। यह श्रद्धा मजबूत जब, उनका हो भव अन्त।।४।।
• श्रद्धा और अश्रद्धा विचार . मूलसूत्रम्सडिस्स णं समणुण्णस्स संपव्वयमाणस्स, समियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ, समियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ, असमयति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ, असमियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ, समियंति मण्ण माणस्स समिया वा असमिया वा समिया होइ उवेहाए, असमियंति मण्णमाणस्स समिया वा असमिया वा असमिया होइ उवेहाए, उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया उवेहाहि समिहाए, इच्चेवं तत्थ संधी झोसिओ भवइ, से उट्ठियस्स ठियस्स गई समणुपासह, इत्थवि बालभावे अप्पाणं णो उवदंसिज्जा। पद्यमय भावानुवाद
अहो! अहो ! जिनवर वचन, सत्य तथ्य सुविचार। अति निष्ठा जिनधर्म पर, संयम ले स्वीकार ।।१।। पहले श्रद्धा जो रही, रहे अन्त तक एक। धन्य पुरुष संसार में, जिसका विमल विवेक।।२।। पहले श्रद्धा शुद्ध हो, हो संयम में प्रीति। तब हो दीक्षा बाद में, यह साधन की रीति।।३।। अशुद्ध श्रद्धा हो प्रथम, ले संयम सहकार। लेकिन दीक्षा बाद में, शुचि श्रद्धा संचार।।४।। पहले श्रद्धा थी नहीं, ले संयम स्वीकार । अगले भव तक होयगा, अश्रद्धा सुविस्तार ।५ ।।