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तीसरा अध्ययन : शीतोष्णीय
पहला उद्देशक
• जागृत दशा. मूलसूत्रम्
सुत्ता अमुणी मुणिणो सया जागरंति।। पद्यमय भावानुवाद
अमुनि अज्ञानी सदा, सोता है दिन-रात । ज्ञानी मुनि जागे सतत, संयम में रत तात।।
• श्रद्धाचरणविवेक. मूलसूत्रम्लोयंसि जाण अहियाय, दुक्खं, समयं लोगस्स जाणित्ता, इत्थ सत्थोवरए, जस्सिमे सद्दा य रूवा य रसा य गंधा य फासा य अभिसमण्णागया भवंति। पद्यमय भावानुवाद
अरे! अरे! इह लोक में, अहित मोह अज्ञान। रहे शस्त्र से विरत मुनि, संयम-श्रद्धावान ।।१।। साधक को इह लोक में, समता मुनि-आचार। घात न करना प्राण की, बस इतना-सा सार।।२।। छह काया युत लोक यह, करे न शस्त्र प्रयोग। आश्रय लेना धर्म का, करो सुकृत उद्योग।।३।। शब्द रूप रस गन्ध अरु, स्पर्श भी लो जान। पाँचों में समभाव रख, ज्ञानी जन फरमान।।४।।