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चौथा अध्ययन : सम्यक्त्व
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पद्यमय भावानुवाद
अगर अहिंसा धर्म की, नहिं तुझको पहचान। सभी तत्त्व हैं व्यर्थ सुन, नहिं होगा उत्थान।।१।। हिंसा में रहते अरे, बनकर बहु तल्लीन। बार-बार मरते रहे, रहते जन्माधीन।।२।।
• अनभिज्ञ. मूलसूत्रम्
समेमाणा पलेमाणा पुणो पुणो जाइं पकप्पेति।। पद्यमय भावानुवाद
जैनेतर जो लोग सब, याकि प्रमादी भाव। रहें धर्म से भिन्न वे, उनमें कब सद्भाव।।
। दूसरा उद्देशक
• आसव-संवर विचार. मूलसूत्रम्जे आसवा ते परिसव्वा, जे परिसव्वा ते आसवा, जे अणासवा ते अपरिसव्वा, जे अपरिसव्वा ते अणासवा, एए पए संबु ज्झमाणे लोयं च आणाए अभिसमिच्चा पुढो पवेइयं। पद्यमय भावानुवाद
आस्रव कारण जो रहे, वह संवर कहलाय। संवर कारण जो रहे, वह आस्रव बन जाय।।१।। संवर व्रत जु विशेष भी, करते बन्धन कर्म। कारण बन्धन कर्म जो, वही निर्जरा कर्म।।२।। पद-भंगों को जान ले, श्री जिनवर अनुसार। कर्मबंध अरु निर्जरा, कह दी भली प्रकार ।।३।।