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श्री आचारांगसूत्रम्
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•मृत्यु. मूलसूत्रम्
नाणागमो मच्चुमुहस्स अत्थि। पद्यमय भावानुवाद
जीव काल के गाल में, तो भी काल न खाय। हो सकता ऐसा नहीं, श्री जिनवर फरमाय।।
• नरकानुभूति. मूलसूत्रम्
अहो ववाइए फासे पडिसंवेयंति। पद्यमय भावानुवाद
आस्रव का सेवन करें, करें कर्म का बंध। पड़ें नरक तिर्यंच गति, जो नर हैं मति अंध।।
.अप्रिय-प्रिय विवेक. मूलसूत्रम्सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं महब्धयं दुक्खं। त्ति बेमि। पद्यमय भावानुवाद
प्राणीभूत जीवसत्त्व, अरे इन्हें मत मार। अनुचित शासन मत करे, यह जिनवर उद्गार।।१।। पहुँचाओ परिताप नहिं, और न दो तुम कष्ट। व्यर्थ इन्हें क्यों मारते, प्राण सभी को इष्ट।।२।। मानव की पहचान है, अनुकम्पा निर्दोष। यही धर्म सिद्धान्त है, साधक रखना होश।।३।। क्यों साधक तू प्रथम ही, परदर्शन बन विज्ञ । उनसे ही पृच्छा करो, जीव-दया अनभिज्ञ ।।४।।