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पाँचवाँ अध्ययन : लोकसार
पहला उद्देशक
• त्याग रहस्य. मूलसूत्रम्आवंती केयावंती लोयंसि विप्परामुसंति अट्ठाए अणट्ठाए वा, एएसु चेव विप्परामुसंति, गुरुसे कामा, तओ से मारस्स अंतो, जओ से मारस्स अंतो तओ से दूरे, णेव से अंतो णेव से दूरे। पद्यमय भावानुवाद
कारण अथवा व्यर्थ ही, हिंसा करते लोग। ऐसे मानव को सदा, मिलें नरक के भोग।।१।। घात करें जिस जीव का, वही जन्म पा जाय। चारों गति संसार में, फिर-फिर गोते खाय।।२।। अज्ञानी नर के लिए, दुष्कर भोग-विराग। मरने पर मिलता नहीं, उसको मोक्ष पराग।।३।। विषयों के सुख निकट नहिं, नहिं विषयों से दूर।
फिर कैसे त्यागी कहें, समझो आगम मूर।।४।। मूलसूत्रम्से पासइ, फुसियमिव कुसग्गे पणुण्णं णिवइयं वाएरियं, एवं बालस्स जीवियं मंदस्स अविया णओ, कूराई कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेइ, मोहेण गब्भं मरणाइ एइ, एत्थ मोहे पुणो पुणो। पद्यमय भावानुवाद-.
नीरबिन्दु कुश नोंक पर, चपल वायु का झोंक। ....जल-कण झर अवनी पड़े, त्यागे कुश की नोंक।।१।।