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कर्म दहन 1. जैसे अग्नि पुराने काष्ट को शीघ्र जला डालती है, वैसे ही समाधिस्थ आत्मा वाला राग-द्वेष रहित पुरुष प्रकम्पित कर्मशरीर को (तप एवं ध्यान रूपी अग्नि से) शीघ्र जला डालता है। आत्म-युद्ध ___2. हे साधक! तू अन्य किसी के साथ युद्ध मत कर, अष्ट कर्म तथा पाँच प्रमादरूपी शत्रु जो तुझे पराजित करने के लिए विविध-विचित्र रूपों में घेरे हुए हैं तू उन शत्रुओं को जीत! तेरे हाथ में विजय शस्त्र होगा। संयम और विवेक के द्वारा इन शत्रुओं को जीतने का कुशल पुरुषों ने उपदेश दिया है। इसे ही आत्म-युद्ध कहा जाता है।
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