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श्री आचारांगसूत्रम्
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पद्यमय भावानुवाद
वर्तमान में सम लखे, अरति और आनन्द। ऐसा साधक क्षय करे, निज कर्मों के फन्द।।१।। हास्य तज जितेन्द्रिय बन, मन वच काय समेत। शुद्ध संयम पालक अहो! वश होगा यम-प्रेत।।२।। तू ही तेरा शत्रु है, तू ही तेरा मित्र। बाहर मत खोजो इन्हें, कर ले भाव पवित्र ।।३।।
• आत्म निग्रह. मूलसूत्रम्पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ एवं दुक्खा पमोक्खसि। पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि, सच्चस्स आणाए से उवट्ठिए मेहावी मारं तरइ। पद्यमय भावानुवाद
कर साधक तू आत्म का, निग्रह कर दिन-रात। इस विधि दुख से मुक्त तू, हो जायेगा भ्रात।।१।। एक मात्र मानव अरे, सम्यक् भली प्रकार। अहो! सत्य को समझ तू, हो जाए भव पार ।।२।। रे मानव धीमान तू, सत्याज्ञा स्वीकार । तिर जाए भव सिन्धु से, नहिं खाये यम मार।।३।।
• प्रमाद दशा. मूलसूत्रम्
दुहओ जीवियस्स परिवंदण माणण-पूयणाए, जंसि एगे पमायंति। पद्यमय भावानुवाद
महा मूढ़ मानव अरे, राग-द्वेष से युक्त। वंदन-पूजा-मान हित, होता पाप प्रवृत्त ।।१।।