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तीसरा अध्ययन : शीतोष्णीय
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पद्यमय भावानुवाद
अहो! वीर तू क्रोध तज, तज माया अरु मान। अरे लोभ फल जानिए, महा नरक उपमान।।१।। यही देख चिन्तन करो, हो जा पाप विरक्त। लघुता धारण कर सदा, करे शोक का अन्त ।।२।।
• दमन बन्धन बोध. मूलसूत्रम्
गंथं परिणाय इहऽज्ज ! धीरे, सोयं परिणाय चरिज्ज दंते।
उम्मग्ग लद्धं इह माणवेहि, णो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि।। पद्यमय भावानुवाद
रे मानव तू आज ही, बनकर वीर महान। ग्रंथि परिग्रह आज ही, करो त्याग मतिमान ।।१।। इन्द्रिय अरु मन से बँधा, विषय-रूप संसार। शीघ्र दमन कर लीजिए, कहते आगमकार। ।। उन्मज्जन तू प्राप्त कर, ले संयम अविलम्ब । मुनि ‘सुशील' उद्धार हित, करना नहीं विलम्ब ।।३।।
तीसरा उद्देशक
लोक सन्धि. मूलसूत्रम्संधिं लोयस्स जाणित्ता, आयओ बहिया पास, तम्हा ण हंता ण विधायए, जमिणं अण्णमण्णवितिगिच्छाए पडिलेहाए ण, करेइ पावं कम्म, किं तत्थ मुणी कारणं सिया ?।