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श्री आचारांगसूत्रम्
उधेड-बुन करता रहे, लिये मनोरथ चित्त। यत्न करे संसार-सुख, चहे बढ़ाना वित्त ।।२।। अपनी इच्छा पूर्ति हित, निश-दिन करता यत्न। अनेक मन का मूढ़ नर, खोये संयम-रत्न।।३।।
.अभय-सन्देश. मूलसूत्रम्णिस्सारं पासिय णाणी, उववायं चवणं णच्चा, अणण्णं चर माहणे, से ण छणे ण छणावए छणतं णाणुजाणए, णिव्विद णंदि, अरए पयासु, अणोमदंसी, णिसण्णे पावेहिं कम्मेहिं। पद्यमय भावानुवाद
पहले सम्यक् जानकर, फिर करते परिहार। ज्ञानी इच्छा नहिं करे, विषय-भोग निस्सार ।।१।। मुनि 'सुशील' संक्षेप में, सर्व जिनागम सार। देते मुनिवर देशना, जीवों को मत मार ।।२।। दृढ़ मन धारण कीजिए, संयम का आचार । जन्म-मरण है भय महा, हिंसा सर्व विडार।।३।। करणयोग से तीन विधि, हिंसा प्रत्याख्यान। सूरि 'सुशील' मोक्षगमन, मारग परम प्रधान ।।४।। विषयों से घृणा करो, और न तिय अनुराग। सम्यक् ज्ञानादिक बनो, पाप कर्म कर त्याग।।५।।
नरक मार्ग. मूलसूत्रम्
कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे णिरयं महंतं। तम्हा य वीरे विरए वहाओ, छिंदिज्ज सोयं लहुभूयगामी।।