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पद्यमय भावानुवाद -
कुशल और मतिमान नर, वस्तु तत्त्व का ज्ञान । कथन 'वीर' का समझकर, जीतें लोक जहान । । १ । । करे न करवाये नहीं, हो न समर्थन राग । तीन करणत्रय योग से, हो हिंसा का त्याग ।। २ ।। लोक-विजय का मार्ग यह, कहते हैं प्रभु वीर । लोभ - परिग्रह-प्रमाद से, विलग रहें मुनि धीर । । ३ । ।
तीसरा उद्देशक
गोत्र चिन्तन
श्री आचारांगसूत्रम्
मूलसूत्रम्
से असई उच्चागोए असई णीयागोए । णो हीणे णो अइरित्ते, णो पीहए । इति संखाए को गोयावाई को माणावाई, कंसि वा एगे गिज्झे तम्हा पंडिए णो हरिसे, णो कुज्झे । भूएहिं जाण पडिलेह सायं ।।७७ ।।
पद्यमय भावानुवाद
नीच - ऊँच दो गोत्र में, जीव जन्म संसार ।
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एक बार की बात नहिं लेता बारम्बार । । १ । । नीच गोत्र का हीन है, क्यों समझे नर रत्न । उच्च गोत्र का श्रेष्ठ है, नहीं गोत्र से भिन्न । । २ । । दोउ गोत्र के जीव सम, है आत्मधर्म अधिकार । नीच - ऊँच के भेद पर, मत कर सोच-विचार । । ३ । । उच्च जाति भव प्राप्त हित, कर इच्छा परिहार । अहो ! जिनेश्वर वचन पर, कर चिन्तन स्वीकार । । ४ । । उच्च गोत्र कुल प्राप्त हो, बनकर वह श्रीमान् । कौन पुरुष इस लोक में, कर सकता अभिमान । । ५ । ।