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दूसरा अध्ययन : लोक विजय
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उच्च गोत्र पाकर अरे, गर्वित हो नहिं विज्ञ । नीच गोत्र पाकर अरे, दुखी न हो आत्मज्ञ ।।६।। पंडित पुरुष विचार कर, जान लीजिए बात। सुख की इच्छा जगत् में, करते सबही तात ।।७।।
.कर्मचक्र. मूलसूत्रम्समिए एयाणुपस्सी, तं जहा-अंधत्तं बहिरत्तं मूयत्तं काणत्तं कुंटत्तं खुज्जत्तं वडभत्तं सामत्तं सबलत्तं। सह पमाएणे अणेगरूवाओ जोणीओ संघायइ विरूवरूवे फासे पडिसंवेयइ। पद्यमय भावानुवाद- .
पंच समिति से युक्त जो, दे आगम पर ध्यान । द्रव्य भाव से जानिए, सूरि 'सुशील' प्रभान ।।१।। अन्धा बहिरा मूक हो, काणा कुबड़ा वक्र। श्याम कुष्ठ शबलत्व तन, गजब कर्म का चक्र ।।२।। धारण करता जन्म वह, विविध योनियाँ माहिं। बहु विधि भोगे जीव दुख, भोगे अरु भछताहि।।३।।
• मूढ़ जीव परीक्षा. मूलसूत्रम्से अबुज्झमाणे हओवहए जाईमरणं अणुपरियट्टमाणे। जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं खित्तवत्थुममायमाणाणं, आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण इत्थियाओ परिगिझ तत्थेव रत्ता। ण इत्थ तवो वा दमो वा णियमो वा दिस्सति। संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मुढे विप्परियासमुवेइ। पद्यमय भावानुवाद- - - व्याधि पीड़ित जहान में, अज्ञानी दिन-रात।
भाजन हो अपमान का, कदम-कदम पर लात।।१।।