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दूसरा अध्ययन : लोक विजय
पद्यमय भावानुवाद
शुद्ध अशन जब प्राप्त हो, मात्रा से पहचान । जैसा प्रभुवर ने कहा, वैसा हो परिमाण ।। १ ।। अशन-लाभ जब प्राप्त हो, मुनिवर करे न मान । नहिं मिलने पर शोक भी, तज देना मतिमान । । २ । ।
अधिक अशन जब प्राप्त हो, संचय करे न सन्त । संचय के दुष्कृत्य से दूर रहे गुणवन्त । । ३ । ।
श्रमणकृत्य
मूलसूत्रम् -
अण्णा णं पास परिहरिज्जा, एसमग्गे आरिएहिं पवेइए, जहित्थ कुसले गोवलिंपिज्जासि ।
पद्यमय भावानुवाद
* ५७ *
समताभावी मुनि सदा, करे परिग्रह त्याग ।
मुनि 'सुशील' जिनवर कथन, समता ही मुनि याग । । १ । । संचय के दुर्भाव में, कभी न हो जो लिप्त । मुनि 'सुशील' का कथन है, साधू संयम - तृप्त । । २ । । • कामनिषेध •
मूलसूत्रम्
कामा दुरतिक्कमा, जीवियं दुप्पडिवूहगं । कामकामी खलु अयं पुरिसे। से सोयड़ जूरइ तिप्पड़ पिड्डड् परितप्पड़ ।
पद्यमय भावानुवाद
महाकठिन संसार में, एक विजय ही काम । मुनि 'सुशील' संक्षेप में, कहता पद्य ललाम । । १।। कामभोग अति अधिक है, अल्प श्वास तन माय । कह - जीवन कैसे बढ़े, होते व्यर्थ उपाय । । २ । ।