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... श्री आचारांगसूत्रम् *३६ * -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-..
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(सातवाँ उद्देशकः)
•हिंसा-त्याग. मूलसूत्रम्
आयंकदंसी अहियं ति णच्चा। पद्यमय भावानुवाद
परपीड़न अरु अहित का, जिसे हुआ है ज्ञान। वह हिंसा से विरत है, फरमाते भगवान।।
• सुरव-दुरव-बोध. मूलसूत्रम्जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ, जे बहिया जाणइ से अज्झत्थं जाणइ। पद्यमय भावानुवाद
जो जाने अन्तर्जगत्, वही जानता बाह्य। पर-निज का ज्ञाता वही, वही श्रमण है मान्य।।
• श्रमण धर्म. मूलसूत्रम्
इह संतिगया दविया णावकंखंति जीविउं। पद्यमय भावानुवाद
हैं कषाय जिनके दमित, दयावीर वे सन्त। करे न हिंसा वायु की, साधन है जीवन्त।।
• दुष्टदशा . मूलसूत्रम्
जे आयारे ण रमंति।