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दूसरा अध्ययन : लोक विजय
*४३ * -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.( दूसरा उद्देशक -
• अरति दशा. मूलसूत्रम्
अरइं आउट्टे से मेहावी, खणंसि मुक्के। पद्यमय भावानुवाद
रहे अरति से विमुख जो, आत्मरमण रति लीन। वह मेधावी पुरुष है, है वह सदा प्रवीन ।।१।। अरति विमुख क्षण मात्र में, हो जायेगा मुक्त। सूरि 'सुशील' आगम-कथन, उभयकाल विश्वस्त ।।२।।
• वेषधारी श्रमण चरित्र. मूलसूत्रम्अणाणाए पुट्ठा वि एगे णियटुंति, मंदा मोहेण पाउडा, अपरिग्गहा भविस्सामो, समुट्ठाए लद्धे कामे अभिगाहइ, अणाणाए, मुणिणो पडिलेहंति, एत्थ मोहे पुणो-पुणो सण्णा णो हव्वाए णो पाराए। पद्यमय भावानुवाद
अहो! अहो! जिनराज की, आज्ञा का फरमान। उससे वह विपरीत ही, मोहावृत इन्सान।।१।। परिषह अरु उपसर्ग से, शीघ्रतया घबराय। तब अज्ञानी जीव दें, संयम साज हटाय।।२।। कितने संयम साध कर, अपरिग्रह व्रत धार। कामभोग में लिप्त हो, जाते संयम हार।।३।। चलते वे विपरीत ही, आज्ञारहित जिणंद। केवल धारक वेष ही, हो जाते स्वच्छन्द ।।४।। विषयभोग सुख प्राप्त हित, करते सतत उपाय। पुनि पुनि मोहासक्त हो, साधक भाव हटाय।।५।।