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भूमिका
तेल बिना दीपक कहाँ, पादप पातविहीन। सूत्र बिना जीवन दशा, तीनों व्यर्थ प्रवीन ।।७१ । । अगर दुष्ट आगम पढ़े, अर्थ करे विपरीत। मुनि 'सुशील' गोपन करो, जिनशासन की रीति ।।७२ ।। आगम की अवहेलना, करता बारम्बार । नर-जीवन तब व्यर्थ है, कभी न बेड़ा पार।।७३ ।।
जैनागम भास्वान श्री जैनागम में अहो! चार कहे अनुयोग। एक विषय व्याख्या सरल, लगा रहे उपयोग।।७४।। द्रव्यानुयोग मनन से, आत्म तत्त्व प्रकटाय। चिन्तन हो षड्द्रव्य का, पदार्थ अरु पर्याय ।।७५ । । अहो गणितानुयोग से, पल्योपम स्थितिबोध । जिससे मन अविचल बने, विकसित अनुभव पौध।।७६ । । पोषक गुण चारित्र हित, मुनियों का व्यवहार। चरणकरणअनुयोग से, हो जाये भव पार ।।७७ ।। महत्पुरुष जीवन दशा, मनन कथा अभिराम। धर्मकथा अनुयोग से, साधक ले विश्राम ।।७८ । । सूत्र भेद अनुयोग से, आगम चार प्रकार । शीघ्र बोध हो सहज में, मिलते तत्त्व उदार।।७९ ।। साधक मति गीतार्थ हो, जैनागम आधीन । निश्रा में अध्ययन करे, होता शीघ्र प्रवीन।।८० ।। जैनागम सागर अहो! साधक बनता लीन। सरिता सम हैं और सब, होती सिंधु विलीन ।।८१ ।। जैनागम भास्वान सम, समस्त लोक प्रकाश। अन्य प्रवचन खद्योत सम, जहाँ-तहाँ आभास।।८२।।