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श्री आचारांगसूत्रम्
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• कर्मबन्ध विचार मूलसूत्रम्
एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा भवंति। पद्यमय भावानुवाद
कर्मसमारम्भ हो रहे, बहु प्रकार इस लोक। जिसको फल का ज्ञान हो, मुनिवर वही विशोक।।
•अनुभूति का अपूर्वदान. मूलसूत्रम्नै जस्सेए लोगंसि कम्मसमारंभा परिणाया भवंति से हु मणी परिणायकम्मे।।१३।। त्ति बेमि।। पद्यमय भावानुवाद
कर्म मर्म जो जानता, कर देता वह त्याग। वही श्रमण संसार में, जिसका भाव विराग।।१।। प्रभु-मुख से मैंने सुने, अरु समझे जो भाव। वैसा ही बतला रहा, अहो! शिष्य सुन चाव।।२।।
द्वितीयोद्देशक:
• अबोध दशा मूलसूत्रम्
अट्टेलोए परिजुण्णे दुस्संबोहे अविजाणए।
अस्सिं लोए पव्वहिए। तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरा परितावेंति।। पद्यमय भावानुवाद
सुनो शिष्य इस लोक में, वे ही पीड़ित तात। ज्ञान-रहित ये मूढ़ जन, दिखा न बोध प्रभात।।१।। लाख-लाख हो यत्न भी, फिर भी प्राप्त न बोध । अज्ञानी बनकर रहें, ज्यों पानी बिन पौध ।।२।।