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पूर्व जन्म का दिशा अज्ञान इस संसार में अनेक जीवों को यह ज्ञान नहीं होता है कि मैं पूर्व दिशा से आया हूँ या दक्षिण, पश्चिम, उत्तर अथवा ऊर्ध्व दिशा अथवा अधो दिशा से आया हूँ? या किसी एक दिशा-विदिशा से इस संसार में आया हूँ। मेरी आत्मा कहाँ से आई है कहाँ आगे जन्म लेगी? उनके मन में इस प्रकार के प्रश्न उठते रहते हैं।
उक्त प्रश्नों का समाधान उन्हें तीन प्रकार से मिल जाता है
(1) स्व-स्मृति से-किसी को ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपक्षम होने पर अचानक जाति-स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो जाता है और अपने पूर्वजन्म का ज्ञान हो जाता है। जैसे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को राजसभा में नर्तकी का नृत्य देखते-देखते हुआ था।
(2) पर-व्याकरण से किसी को तीर्थंकर आदि विशिष्ट ज्ञानियों के बोध कराने पर। जैसे मेघ मुनि को भगवान महावीर की वाणी से हाथी के भव की स्मृति हुई। ___ (3) परेतर उपदेश से किसी को अवधिज्ञानी आदि अन्य मुनियों के मुख से सुनकर अपने पूर्वजन्म का ज्ञान होता है। जैसे भृगु पुरोहित के पुत्रों को मुनियों के मुख से सुनकर पूर्वजन्म का ज्ञान हुआ।