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प्रथम अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा
• पृथ्वीकाय बोध. मूलसूत्रम्
संति पाणा पुढो सिआ। पद्यमय भावानुवाद
अज्ञानी इस लोक में, पंडित हो दिन-रात । नित्य यही अनुभव करे, फिर भी समझ न भ्रात।।१।। भिन्न-भिन्न परिताप दें, नाना कर्म विचार । रे! रे! आतुर जीव तू, विषयासक्त अपार ।।२।। पृथ्वीकाय मध्य में, आश्रित जीव अनेक। हिंसा कभी न कीजिए, रखना यही विवेक।।३।।
• श्रमण हितोपदेश. मूलसूत्रम्
लज्जमाणा पुढो पास। पद्यमय भावानुवाद
रे! रे! साधक देख तू, साधक का व्यवहार । हिंसा से लज्जित रहे, अनुकम्पा आचार।।
• असाधु निर्णय मूलसूत्रम्
अणगारा मो त्ति एग पवयमाणा।। पद्यमय भावानुवाद
रे! रे! देख कहते रहें, गृह-त्यागी हम सन्त। फिर भी हिंसा कर रहे, विषयों में आसक्त ।।१।।
....... •बोधिबाधक तत्त्व. मूलसूत्रम्
तं से अहियाए, तं से अबोहिए।