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श्री आचारांगसूत्रम्
आचारांग सूत्र अहो! जैनधर्म का प्राण । विश्वबन्धु की भावना, अखिल जगत् का त्राण।।२०० । । आचारांग सूत्र अहो! सर्व विश्व सिरमौर । वाद तर्क के समर का, हो विरोध अति घोर ।।२०१।। आचारांग सूत्र अहो! सर्वाधिक प्राचीन। भाषाशास्त्री कह रहे, जन-जन आज यकीन।।२०२।। आचारांग सूत्र अहो ! जैनागम नवनीत । गद्य-पद्य मिश्रित तथा, लय-गति-युत संगीत।।२०३।। आचारांग सूत्र अहो! करता संशय नष्ट। गुप्त अर्थ प्रकटित करे, साधक का है इष्ट।।२०४।। आचारांग सूत्र अहो! तीर्थंकर पर्याय। समवसरण अनुभव करे, सुर-तिर्यंच नर राय।।२०५।। आचारांग सूत्र अहो! जानो प्रकट प्रमाण । कुंजी यह आचार की, जैनागम जगप्राण।।२०६ ।। जगनायक जिनवर अहो! देशकाल अनुरूप। देते पावन देशना, प्रकटित आतम रूप।।२०७।। महाविदेह सुक्षेत्र में, सीमन्धर भगवन्त । अहो! आयारसूत्र का, सर्वप्रथम वर्णन्त।।२०८।।
आगम की परिभाषा वस्तु-तत्त्व का जो करे, धर्म-मर्म का ज्ञान। . मुनि 'सुशील' आगम वही, कर लेना श्रद्धान।।२०९।। परम्परा आचार से, तत्त्व देइ प्रकटाय। आप्त वचन आगम अहो, सीख सही बतलाय।।२१०।। राग-द्वेष से मुक्त है, आप्त पुरुष भगवन्त। उनका हित उपदेश ही, जैनागम शिव-पंथ।।२११ । ।