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भूमिका
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जैनागम श्रद्धा करो, फलयुत प्रत्याख्यान । चाहे श्रावक श्रमण हो, सब हित भाव समान । । १८९ । । जैनागम है राजपथ, उपाध्याय मर्मज्ञ । विनययुक्त सेवा करें, बन जाएँ तत्त्वज्ञ । । १९० ।। दीक्षित तीन वर्ष का, निशीथ अरु आचार । अध्ययन की अनुमति करें, श्री गुरुवर गुणधार । । १९१ । । जिनागमों के पर्यायवाची नाम
सूत्रग्रन्थ प्रवचन वचन, आप्त वचन आम्नाय प्रज्ञापन उपदेश श्रुत, आगम नाम कहाय । । १९२ । । श्री आचारांग के पर्यायवाची नाम
आयार आयरिस अंग, आजाइ आचाल । आगराऽऽसास आइण्य, अमोक्ख अरु आगाल । । १९३ ।। श्री आचारांग महत्त्व बोध
आचारांग सूत्र अहो, भव्य जीवन आधार । प्रथम रूप अध्ययन सुखद, साधक हो भव पार । । १९४ ।। आचारांग सूत्र अहो ! श्रमण धर्म का मूल । गुरुमुख से पढ़ लीजिए, हो संयम अनुकूल । । १९५ ।।
आचारांग सूत्र अहो ! ज्ञाता हो आचार्य । इसीलिए माना गया, श्रमणों में अनिवार्य ।।१९६।।
आचारांग सूत्र अहो ! प्रथम प्रभोः उपदेश । त्रैकालिक संविधान यह, हारक भविजन क्लेश । । १९७ ।। आचारांग सूत्र अहो ! सब अंगों का सार । सूरि 'सुशील' निवृत्ति का, सहज मार्ग सुखकार । । १९८ । । आचारांग सूत्र अहो ! प्रथम अध्ययन खास। मुनि जीवन परिपालना, कर लेना उल्लास । । १९९ ।