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भूमिका
सूत्र प्रकाशित सूर्य सम, सुलभ हुए कलिकाल। फिर भी जो नर दूर है, भाग्यहीन कंगाल।।१६७।। चाहे जिसको है नहीं, जैनागम का ज्ञान । पात्र-कुपात्र को देखकर, कर लेना पहचान।।१६८ ।। जैनागम के ज्ञान बिन, व्यर्थ देशना जान। मुनि 'सुशील' की बात पर, धरना साधक ध्यान।।१६९ । । सूत्र ज्ञान जिसने लिया, सभी ले लिया सार। बस इतनी-सी बात है, ध्यान धरो अणगार।।१७० ।। गागर में सागर भरा, सिन्धु बिन्दु दरम्यान । परमाणु रूप आगम कहो, या कल्पबेल उपमान।।१७१ । । जैनागम इस विश्व में, शिव-सुख का आधार। जाना नहिं सिद्धान्त जो, व्यर्थ मही पर भार।।१७२।। जैनागम समझो अगर, शिव-सुख अपने हाथ। रे चेतन! चिन्तन करो, यह परभव का साथ ।।१७३ ।। आगम से अनभिज्ञ है, निर्णय से अनजान। निजमत परमत एक है, कोकिल-काग समान।।१७४।। जैनागम आदेश को, करता है जो मान्य। सर्वसिद्धियाँ कर बसें, सब भूसी यह धान्य।।१७५ । ।
छन्द कुंडलिया बिन योगोद्वहन के पठन, बिन दीक्षा पर्याय। आगम पढ़ना दोष हो, ज्ञानी जन समझाय।। ज्ञानी जन समझाय, ज्यों विधवा गर्भ धारे। विधवा होती भ्रष्ट, कि संशय अधिक उभारे।। मुनि 'सुशील' उपमा कहे, उलूक अंधा होय दिन। बिन योगोद्वहन सूत्र, पठन दीक्षा पर्याय बिन।।१७६ ।।