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श्रीमद् आचारांगसूत्र
तस्य प्रथम अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा
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प्रथम उद्देशक
• छन्द-दोहा. जैसा गीता में हुआ, कृष्णार्जुन संवाद । ऐसे ही गुरु-शिष्य की, आज कर रहे याद ।।१।। सुधर्म स्वामी पाँचवें, प्रभु गणधर विख्यात । कहते जम्बू शिष्य से, धर्म-मर्म की बात ।।२।। आगम रचना इन करी, किया जगत् उपकार । पढ़ो-सुनो संवाद यह, वाणी लो उर धार ।।३।।
•जीव का अस्तित्व बोध. मूलसूत्रम्सूयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इहमेगेसिं णो सण्णा भवइ। पद्यमय भावानुवाद
कहें सुधर्मा शिष्य से, आयुष्मन् यह जान। श्रीमुख प्रभु से मैं सुना, जीव बोध का ज्ञान।।१।। ऐसे हैं कुछ जीव जग, जिन्हें न संज्ञा-ज्ञान। कैसे आगे यह कहूँ, सुन लेना धर ध्यान ।।२।। 'संज्ञा' है सुन 'चेतना' दो प्रकार लो जान । ज्ञान-चेतना है प्रथम, दूजी अनुभव-ज्ञान । ।३ । । संवेदन-अनुभूति तो, सब में होती तात। ज्ञान-बोध जिनमें रहे, संज्ञी जीव कहात ।।४।।